ख्वाहिशों की मौत-10

दिनेश...... दिनेश....... के स्वर ने जैसे दिनेश को गहरी नींद से जगाया,  कैकयी ने सिर पर एक थपकी जमाते हुए अब सपने देखते रहोंगे या घर जाकर बताओगे भी, और यह टिफिन पकड़ो तुम्हारी मां से बोलना इसे संभाल कर रखेगी । यह मुझे इनाम में मिला था। इतना सुनते ही दिनेश बिना रुके घर की तरफ चल पड़ा I लगता था जैसे पंख लगे हो उसको ,घर पहुंचकर मां को टिफिन थमा कर बुआ की सारी बातें बताई और अपने आप को साधारण सा वयक्त करते हुए खेत की ओर चल पड़ा I       ऐसा लगता था कि वह एक अलग ही दुनिया में खोया हुआ है। खेत का हर हिस्सा एक नई कहानी जैसे उसे बयां करता है। वह मेड़ पर बैठ मस्त हवाओं में जैसे प्रीति की हर याद को ताजा कर लेना चाहता था। उसका रह-रहकर गर्दन हिलाना, तालाब में पत्थर फेंकना और पैरों की उंगलियों से जमीन खोदना सब कुछ उसकी व्याकुलता को दर्शाता था।

प्रीति के बालों का स्पर्श पाकर वह मंत्रमुग्ध हुआ और उसी शाम बाहर आकर घर के हर कोने से उसे ताकने लगा। शायद प्रीति उसके आकर्षण को जान चुकी थी और वह भी दिनेश के स्पर्श को भुला नहीं पा रही थी। बातें सिर्फ इशारों में ही थी, लेकिन कहना बहुत कुछ चाह  रहे थे। आखिर थक हार दिनेश गुस्से में छत पर जाकर खड़ा हो गया और सीढ़ी पर हर आने जाने वाली की पहचान को  अनुभव करने लगा।

तभी अचानक किसी की आहट को सुनकर वह जानबूझकर वहां पीछे पलंग पर लेट गया I और यह दिखाने लगा कि जैसे वह सोया हुआ है। प्रीति अपनी सहेली के साथ छत पर आई, और जानबूझकर उसके पलंग पर बैठ गई। इधर उधर की बात करने लगी। दिनेश पूरा प्रयत्न कर रहा था कि उठ बैठे, लेकिन लाख प्रयत्न करने पर भी वह हिम्मत नहीं जुटा रहा था। उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसके हाथ में कुछ रख दिया है। दिनेश ने बिजली की चमक से जैसे, बाज अपने शिकार को दबोचता है, ठीक उसी प्रकार प्रीति के हाथों को अपने कब्जे में ले लिया। प्रीति का हाथ अभी उसके हाथों में था। दोनों ही स्पर्श मात्र से ही रोमांचित हुए जा रहे थे। तभी उसकी सहेली ने उसे जगा सा दिया, अच्छा ठीक है अब तुम ही बात करो मैं चलती हूँ ,और साथी एक जोरदार चुटकी दिनेश के पैर  की ली, दिनेश तड़पता हुआ उठ बैठा, लेकिन उसकी तड़प का एहसास प्रीति के चेहरे में साफ नजर आया, और उसकी सहेली मुस्कुराती हुई भाग गई।

इस हड़बड़ाहट में दिनेश ने प्रीति को अपनी ओर खींच लिया। तभी प्रीति हड़बड़ा कर उठी और बोली इतनी जल्दी.......... कल तो तुम मुंह फुलाए बैठे थे, और अभी पूरे घर का कोना-कोना छान मारे हो.......काहे ताक रहे हो हमें.... सुबह से.....क्या तुम्हारे गांव में कोई लड़की नहीं है........ है तो...... एक दो लड़की  है, अच्छी भी है..... दिनेश प्रीति के चेहरे के भाव पढ़ लेना चाहता था। अच्छा.... अच्छा....... तो उन्हें ही देख लेते। हमें क्यों छत पर बुलाया.......... हम तो नहीं बुलाए......... नीचे ठीक नहीं लगा तो टहलने आ गए थे।

अच्छा तो हमने ही गलती की यहाँ आकर......पलट कर जाने लगी। तभी दिनेश के हाथों में प्रीति का दुपट्टा आ गया जो उसे भूल रही थी। उसे देते हुए दिनेश बोला, जल्दी में मैं नहीं तुम हो, इसे संभाल कर रखो। जब हमारे गांव आओगे तब लेकर आना, बाबूजी को संस्कारवान बहू पसंद है। अच्छा और किस-किस को क्या-क्या पसंद है, यह भी बता दो। लेकिन ये कब बताओगे, हम पसंद है भी या नहीं । सुना है  बड़े होशियार हो पढ़ाई में....... हम भी बाहरवीं  पास हो गए.... और साइंस लिए हैं.... इतनी पढ़ी-लिखी चलेगी ,या थोड़ा और पढ़ ले ।

दिनेश.. इससे पहले कि प्रीति कुछ कह पाती, आगे बढ़कर उसके माथे को चूम लिया। पूरा वातावरण सुन  हो गया। दोनों ही प्रथम चुंबन की मदहोशी में जैसे निःशब्द से हो गए, प्रीति शर्मा कर बस रहने दो कहते हुए दिनेश को पलंग पर तेजी से ठेल सीढ़ी से भागती हुए चली गई। दिनेश पूरी रात शादी के गीतों में जैसे अपने को और प्रीति को टटोलता रहा, कितनी बार वह पलट कर सीढ़ी की और देखता, तो कभी आहे भरकर आसमान को....यही सोचते-सोचते उसकी कब आँख लग गई ,पता ही ना चला।

दूसरे दिन सुबह पानी की तेज फ़ुवार ने दिनेश को जगाया। देखा तो प्रीति उसकी बुआ के साथ कपड़े फैलाने छत पर आ गई थी, और जानबूझकर कपड़े झटक कर पानी को बिखेरा , यह देख दिनेश और प्रीति फिर एक बार नई उमंग के साथ पुनः मिलने की आस में एकांत वातावरण को तलाशते रहे.... अब संभव ना था ...

क्रमशः........

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4 Comments

Rupesh Kumar

19-Dec-2023 09:21 PM

V nice

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Gunjan Kamal

19-Dec-2023 08:28 PM

👏👌

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Shnaya

19-Dec-2023 11:16 AM

Nice one

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